सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक प्राचीन हिंदू स्तोत्र है जो माँ दुर्गा को समर्पित है। यह स्तोत्र तंत्र मंत्र शास्त्र में महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे माँ कुंजिका के प्रसन्नता प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य का जीवन समृद्धि, सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है। यह स्तोत्र श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ किया जाना चाहिए।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के फायदे:
- आत्मिक शांति: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के अंदर आत्मिक शांति और सुकून की भावना उत्पन्न होती है।
- भय का नाश: माँ दुर्गा के इस स्तोत्र का पाठ करने से भय, चिंता और अन्य अवसादपूर्ण भावनाएं नष्ट होती हैं और व्यक्ति में साहस और स्थिरता की भावना उत्पन्न होती है।
- कष्टों का निवारण: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले कष्टों और संकटों का निवारण होता है।
- कार्यशीलता में वृद्धि: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के कार्यशैली में वृद्धि होती है और उसका मन नए ऊर्जा और उत्साह से भर जाता है।
- संतान सुख: यह स्तोत्र संतान सुख एवं पुत्र प्राप्ति के लिए भी प्रसिद्ध है। जिन लोगों को पुत्र की प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो, उन्हें इस स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
- साधना में सफलता: इस स्तोत्र के पाठ से साधना में सफलता मिलती है और व्यक्ति के जीवन में उत्कृष्टता की प्राप्ति होती है।
Sidh Kunjika Stotra Lyrics in Hindi
ओं अस्य श्री कुञ्जिका स्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ओं ऐं बीजं, ओं ह्रीं शक्तिः, ओं क्लीं कीलकम्, मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥ १ ॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानम् च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ २ ॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ ३ ॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४ ॥
अथ मन्त्रः
ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।
ओं ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ ५ ॥
इति मन्त्रः
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ ६ ॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ ७ ॥
ऐङ्कारी सृष्टिरूपायै ह्रीङ्कारी प्रतिपालिका ।
क्लीङ्कारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ ८ ॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥ ९ ॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ १० ॥
हुं हुं हुङ्काररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ ११ ॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ १२ ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ १३ ॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ १४ ॥
यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ १५ ॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे सिद्ध कुंजिका स्तोत्र |
कुंजिका स्तोत्र का पाठ सुबह प्रातः स्नान करके किया जा सकता है। तथा इसका पाठ शाम के समय या रात मैं भी किया जा सकता है। पाठ को करते वक्त लाल वस्त्र जरूर धारण करें। पाठ शुरू करने से पहले देवी को प्रणाम करके संकल्प लें फिर कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।