इस श्लोक का प्रयोग शिव के आदिशक्ति और आदियोगी के स्वरूप की महिमा को दर्शाने के लिए किया जाता है, जो संसार के समस्त भेदों से परे हैं और निर्वाण का प्रतीक हैं। यह श्लोक भक्ति के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, जिसमें भक्त ईश्वर के आदिरूप में उसका आदर करता है और उसकी पूजा करता है। “नमामीशमीशान निर्वाण रूपं” श्लोक संस्कृत में है और इसका अर्थ है, “निर्वाण के स्वरूप में शिव को नमस्कार है”। यह श्लोक भगवद्गीता के आधार पर है और इसे आध्यात्मिक भावना को व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता है।
Namami Shamishan Lyrics with Meaning
श्री शिव रूद्राष्टकम संस्कृत स्तुति पाठ पढ़ें हिंदी अर्थ सहित। रुद्राष्टकम नमामीशमीशान निर्वाण रूपम पाठ शिवजी की स्तुति का सबसे महत्वपूर्ण अद्भुत स्तोत्रतम पाठ है। यह एक चमत्कारिक मंत्र पाठ है। रामचरित मानस के रचनाकार श्री गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इस अष्टकम की रचना की गई है। मानस के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण जैसे भयंकर शत्रु पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था। इस पाठ के कारण ही उन्हें शिवजी की कृपा प्राप्त होकर युद्ध में विजयी मिली थी।
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं,
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,
चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ।।
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं,
गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं,
गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं,
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा,
लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा ।।
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं,
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं,
प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं,
अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं,
भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,
सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी ।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी,
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं,
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं,
प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजा,
न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं,
प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ।।
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति ।।
।। इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं
श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।।