Rin Mochan Mangal Stotra Pdf

ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ हिंदी में PDF, ऋणमोचक मंगल स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित, ऋणमोचक मंगल स्तोत्र २१ नाम

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र भगवान मंगल (हनुमानजी) को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो ऋणों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है। यहाँ इस स्तोत्र का पाठ है:

ऋणमोचक मंगल स्तोत्र (अर्थ सहित)

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मविरोधकः॥1॥

अर्थ:
मंगल ग्रह, जो भूमिपुत्र है, ऋणों का हर्ता और धन प्रदान करने वाला है। वे स्थिर स्थान में स्थित होते हैं, महाकाय हैं और सभी कर्मों के विरोधी हैं।

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥

अर्थ:
वे लाल रंग के और लाल नेत्रों वाले हैं, सामगान के कृपा करने वाले हैं। वे धरती के पुत्र, कुज, भौम, भूतिदाता और भूमिनन्दन हैं।

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥

अर्थ:
अंगारक और यम भी सभी रोगों को हरने वाले हैं। वे वर्षा के कर्ता और अपहर्ता हैं और सभी कामनाओं के फल प्रदान करने वाले हैं।

एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4॥

अर्थ:
जो व्यक्ति श्रद्धा के साथ इन मंगल ग्रह के नामों का नित्य पाठ करता है, उसे ऋण नहीं होता और उसे शीघ्र धन प्राप्त होता है।

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5॥

अर्थ:
जो धरणी के गर्भ से उत्पन्न हुआ है, विद्युत के समान कान्ति से प्रकाशित है, कुमार और शक्ति धारण करने वाले मंगल को मैं प्रणाम करता हूँ।

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6॥

अर्थ:
इस अंगारक स्तोत्र का सदा पाठ करना चाहिए। जिनका यह पाठ होता है, उन्हें भौम की पीड़ा कभी नहीं होती।

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7॥

अर्थ:
अंगारक महाभाग, भगवन्, भक्तवत्सल! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। कृपया मेरे समस्त ऋणों को शीघ्र नष्ट करें।

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥8॥

अर्थ:
मेरे ऋण, रोग, दारिद्र्य, अपमृत्यु, भय, क्लेश और मनस्ताप सदा के लिए नष्ट हो जाएं।

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9॥

अर्थ:
अतिवक्त्र, दुरारार्ध्य, भोगमुक्त और जितात्मन होने पर, प्रसन्न होने पर साम्राज्य प्रदान करते हैं और रूष्ट होने पर तत्क्षण हर लेते हैं।

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10॥

अर्थ:
विरिंचि, शक्र, विष्णु आदि देवताओं के लिए जो सर्वसत्ता संपन्न हैं, वही तुम ग्रहों के राजा और महाबल हैं।

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11॥

अर्थ:
हे मंगल, मुझे पुत्र और धन प्रदान करो। मैं आपकी शरण में आया हूँ। मेरे ऋण, दारिद्र्य, दुःख और शत्रुओं के भय को दूर करो।

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12॥

अर्थ:
जो व्यक्ति इन बारह श्लोकों से धरासुत (मंगल) की स्तुति करता है, वह महान संपत्ति प्राप्त करता है और धनवान युवा हो जाता है।

|| इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||

इस स्तोत्र का नियमित रूप से श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पाठ करने से ऋणों से मुक्ति प्राप्त होती है एवं धन की प्राप्ति होती है।